ग्लोबल वार्मिंग : हम अपनी कब्र खुद ही खोद रहे हैं? आखिर क्यों?
पिंकी सिंघल
ग्लोबल वार्मिंग पर कुछ भी लिखने से पहले हमें यह जान लेना अत्यंत आवश्यक है कि आखिर ग्लोबल वार्मिंग होता क्या है ।इसका परिणाम क्या होगा और यह किन कारणों से होता है, इन सब बातों पर चर्चा इसका अर्थ जानने के पश्चात ही की जाए तो बेहतर है। सामान्य जन को समझाने के उद्देश्य से यदि ग्लोबल वॉर्मिंग को परिभाषित किया जाए तो पृथ्वी की सतह पर औसतन तापमान का बढ़ना ग्लोबल वार्मिंग कहलाता है। हिंदी भाषा में इसे वैश्विक तापमान कहा जाता है।ग्रीन हाउस गैसों का अत्यधिक एवं अनियंत्रित तरीकों से जब उत्सर्जन होता है, तब ग्लोबल वार्मिंग की समस्या सामने आती है साथ ही साथ जीवाश्म ईंधनों का जलना भी ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण माना जा सकता है।
धरती के तापमान में जब बढ़ोतरी होती है तो वह किसी भी प्रकार से मानव जाति के लिए हितकारी नहीं हो सकती ।मानव जाति ही क्यों ,विभिन्न प्रकार के जीव जंतुओं के लिए भी ग्लोबल वार्मिंग खतरे की निशानी समझी जाती है। जीवाश्म ईंधनों का जरूरत से ज्यादा उपयोग एवं कार्बन उत्सर्जन अधिक होने की वजह से धरती का तापमान बढ़ता जाता है जिस पर नियंत्रण नहीं लगाया जाता तो ग्लोबल वार्मिंग की समस्या उत्पन्न होती है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो ग्लोबल वार्मिंग की समस्या बेलगाम रूप से बढ़ती ही जा रही है। विकसित एवम विकासशील देशों ने इस दिशा में केवल और केवल सामूहिक सम्मेलन एवं विश्वव्यापी परिचर्चा ही आयोजित की हैं, परंतु उनमें से किसी भी देश, चाहे वह अमेरिका हो रूस हो चीन हो या अन्य कोई देश,ने इस समस्या पर वास्तविक रूप में काम किया ही नहीं है ।केवल स्वयं को विकसित देशों की श्रेणी से भी आगे ले जाने की होड़ उन सभी के बीच लगी हुई है।सही मायने में कहा जाए तो विकसित देश ग्लोबल वार्मिंग के लिए सबसे बड़े जिम्मेदार कारक हैं।
वैज्ञानिकों द्वारा बार-बार चेताने के पश्चात भी विभिन्न राष्ट्र प्रमुख जब इस समस्या की ओर ध्यान नहीं देते एवं त्वरित प्रगति और विकास की अंधाधुंध दौड़ में शामिल होकर जीवाश्म ईंधनों का आवश्यकता से अधिक इस्तेमाल करते हैं, तो ग्लोबल वार्मिंग की समस्या और भी अधिक विकराल रूप धारण कर लेती है। कोई भी देश यह क्यों नहीं समझना चाहता कि चाहे वह विकसित देश हो अथवा अल्पविकसित या फिर विकासशील ही क्यों ना हो ,ग्लोबल वॉर्मिंग का कुप्रभाव सभी पर एक समान पड़ता है और आने वाले 10 से 15 वर्षों में यदि ग्लोबल वार्मिंग का स्तर नीचे नहीं आया तो यह धरती के लिए अत्यधिक खतरे की बात है ।समय रहते यदि सही कदम न उठाया गया एवं कार्बन उत्सर्जन के बढ़ने पर नियंत्रण नहीं लगाया गया तो वह दिन दूर नहीं जब धरती पर दावानल भड़क उठेगी एवं हम सब उस अग्नि में इस कदर झुलस जाएंगे कि हमारा नामोनिशान तक नहीं रहेगा।
क्यों हम उस धरती माता को आग में झोंक देना चाहते हैं जो हमें प्रकृति के सुंदर उपहारों के माध्यम से शीतलता प्रदान करती है और हमें जीवन दान देती है ?क्या हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को यह उपहार देना चाहते हैं ?क्यों हम इस विषय पर जरा भी गंभीर नहीं है ? क्यों हम इस विषय पर संवेदनशीलता नहीं दिखाते? क्यों हम कुछ ऐसा नहीं करना चाहते जिससे ग्लोबल वार्मिंग पर नियंत्रण पाया जा सके ?क्यों हम तरक्की और प्रगति की दौड़ में इस कदर बावले होते जा रहे हैं कि हमें यह नजर ही नहीं आ रहा कि हम अपनी कब्र खुद ही खोद रहे हैं? क्यों आखिर क्यों?
यह अति सोचनीय विषय है।